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संयुक्त विकास पार्टी ही क्यों ?​

संयुक्त विकास पार्टी ही क्यों ?

संगठनात्मक ढाचा
विधान सभाओं एवं लोकसभाओंके स्तर पर पार्टी का संगठन तैयार होना चाहिए । जहाँ पर स्थायी कार्यकारिणी बनने की स्थिति न हो वहीं शुरूआत संयोजक बनाकर किया जाए । कार्यकारिणी का ढांचा वही है जो आम होता है , जैसे अध्यक्ष , दो या तीन उपाध्यक्ष , महामंत्री आवश्यकतानुसार संगठन मंत्री आदि । इसके ऊपर जिले स्तर का संगठन तैयार करना चाहिए और उसकी कार्यकारिणी भी अन्य संगठनों के ही अनुरूप होगी । प्रदेश स्तर पर कार्यकारिणी का गठन होना आवश्यक है , लेकिन शुरुआत में यदि उस स्तर के लोग नहीं मिलते हैं , तो जिले स्तर पर संगठन तैयार करते रहना है । जब हम समझ ले कि प्रदेश स्तर पर उपयुक्त व्यक्ति मिल गया है , तो उसे संयोजक या प्रदेशाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया जा सकता है | जरूरी नहीं है कि संयोजक या अध्यक्ष यद सीधे मुक्ति से प्रदेश कार्यकारिणी के न की शुरूआत की जाए बल्कि प्रदेश महामंत्री या सचिवका अन्य पदों पर नियुक्ति करते हुए प्रदेश स्तर पर कार्य शुरू किया जा सकता है । यह ध्या चाहिए कि चाहे विधान सभा स्तर का गठन हो या उसके ऊपर को उन्हीं पदों पर लोगों को रखा जाए , जिसके लिए वे उपयुक्त हो कोशिश रहे कि कभी भी कार्यकारिणी के सारे महत्वपूर्ण नहीं जाने चाहिए वरना बाद में लोपाको संगठन में शामिल करना मुश्किल हो जाता है ।

सदस्यता
सदस्यता का फार्म केन्द्रीय कार्यालय से ही जारी होगा । जहाँ पर प्रदेश कार्यकारिणी का गठन हो गया है . यहाँ से पहले उसे दिया जाएगा , फिर जिला व विधान सभा इकाइयों को नहीं से वितरित किया जाएगा । सक्रीय सदस्यता शुल्क 250 रुपये है , आजीवन सदस्यता शुल्क 5000 रुपये हैं|

झण्डा एवं चुनाव निशान
पार्टी का झण्डा तीन रंग का है , ऊपर केसरिया , मध्य में नीला , नीचे हरा झण्डे के बीच में भारत का नक्शा होगा । नक्शे के अंदर चार निशान होंगे , जैसे ” ऊँ ” ” अल्लाह ” ” वाहेगुरु और X ( क्रॉस ) । चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड है , किंतु जब तक किसी प्रदेश में 6 प्रतिशत वोट प्राप्त करने के बाद मान्यता नहीं मिल जाती , तब तक कोई चुनाव निशान रजिस्टर्ड नहीं होगा ।

Press Interview

औद्योगिक नीति
कम्प्यूटर एवं इंटरनेट के युग में कृषि क्षेत्र का योगदान घरेलू उत्पाद दिनोंदिन कम होता जाएगा । रोजगार के भी अवसर घटेंगे । सिंगापुर एवं जापान जैसे देशों में कृषि योग्य जमीन नाममात्र की है लेकिन वहाँ तरक्की बहुत हुई है । गाँव के लोगों को शहरों में भागकर इसलिए आना पड़ता है कि यहाँ पर रोजगार है । कृषि प्रधान देश होते हुए भी कृषि आधारित उद्योग नहीं के बराबर है । अधिक से अधिक इस तरह के उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में लगाए जा सकते जिससे रोजगार के अवसर के साथ – साथ निर्यात भी बढ़ेगा । पूर्व में पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहन जैसे बिक्रीकर , आयकर , उत्पाद शुल्क आदि में छूट दिए गए , लेकिन इसका दुरुपयोग किया गया ऐसा प्रोत्साहन देते हुए पिछड़े क्षेत्रों में अधिक से अधिक उद्योगों की स्थापना होनी चाहिए । आम आदमी आज राजनीति से होता दिखाई पड़ रहा है । लोग सोचते हैं कि यह अच्छे लोगों के दिऐसा देश के लोग सबसे से देशों में लोगों की बुनियादी सुविधा इसलिए उन्हें कुछ गरीवी – अमरीकी इतनी हो सकती है ।

विदेश नीति
हमारी विदेशनीति अब तक ठीक न होने के कारण मित्र देश भी शत्रु हो गए हैं । हमारे ही कारण बांग्लादेश बना और उसे हमारा ऋणी रहना चाहिए लेकिन वह विरोधी सोने में खड़ा दिखाई पड़ता है । पूर्व में तो विदेशनीति कुछ ठीक भी थी . जब भारत किसी भी सुपर पावरका खुले रूप से न होकर निश्पक्ष और निर्गुट हुआ करता था । विश्व व्यापार संगठन अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोश एवं विकसित देशों की तमाम शर्तों को देश के हितों की कीमत पर माना जा रहा है , जबकि मात्र दो प्रतिशत अमेरिकी साफ्टवेयर के क्षेत्र में रोजगार भारत या अन्य देशों को चला गया , तो यहाँ हाहाकार मच गया । अमेरिका में आउटसोर्सिंग का विरोध है । भारत की विदेश नीति की नहीं देश मनवा लेते हैं , लेकिन अमात्र भारत नहीं है । कारगिल में घुसपैठिए आए और में कितनी सेना मारी गयी और अपनी विदेशीतभारत यदि सामाजिक में कुछ करने को तैयार पता भी नहीं चला । भगाने मे केतनी सेना मारी गयी और अखूट धन भी खर्च हुआ, यह कोइ विदेशनीति हैं? भारत यदी सामाजिक अघोषीत युद्द का समना न करता, तो दुनिया क सुपर पावर होता और विदेशनीति न्यायसंगत बनती ।

शिक्षा
आजादी के बाद सबसे पहले और मुख्य काम सरकार को सभी भारतवासियों को अनिवार्य रूप से शिक्षित करने का होना चाहिए , जो न किया जा सका । शिक्षित व्यक्ति अपने अधिकार के लिए संघर्श कर सकता है । अतः नागरिक की निर्भरता सरकार ने ऊपर अपने आप कम हो जाती है । किसी भी समाज या धर्म का शिक्षित व्यक्ति साधारणतया जनसंख्या नियंत्रण स्वयं करके बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करता है । अन्य सुनियादी जरूर जैसे- मकान , कपड़ा और स्वास्थ्य आदि सुविधाओं एवं आवश्यकताओं को स्वतः पूरा करने में सक्षम हो जाता है , नहीं तो वह स्वरोजगार के माध्यम से बेहतर नागरिक बनने का प्रयास करता है । वर्तमान में निजीक्षेत्र में ही मुख्य रूप से उपयोगी एवं आधुनिक शिक्षा दी जा रही है , और सरकारी विद्यालयों की हालत जान बूझकर खराब की जा रही है . जिसके कारण गरीब एवं दलित अच्छी शिक्षा से वंचित होते जा रहे हैं । चाहे संयुक्त विकास पार्टी को यह भी माग करनी पड़े कि अन्य कल्याणार्थ एवं विकास के खर्चा में कटौती सरकार को करना पड़े लेकिन सबको समान एवं अनिवार्य रूप से शिक्षित किया जाए । क्यूबा जैसे छोटे देश में भी प्रारंभ से लेकर पी.एच.डी. तक मुफ्त में शिक्षा दी जाती है , तो क्या भारत में यह समय नहीं है ? यदि सबको शिक्षित कर दिया जाए तो तमाम समस्याएं जैसे साम्प्रदायिकता , छुआछूत , जनसंख्या अंधविश्वास मान्यवाद एवं संकीर्ण भावनाएं इत्यादि अपने आप कम हो जाती है । सरकार पोलियो अभियान चलाए या प्रशिक्षा अथवा जनसंख्या नियंत्रण अभियान , इससे खास परिवर्तन होने वाला नहीं है । शिक्षित व्यक्ति अपने आप इन समस्याओं का नखोज लगा है । सबको शिक्षित करने से देश की बुनियादी समस्याएं स्वत: कम होगी और सरकार का अर्थ और प्रयास भी कम करने होंगे । राजनैतिक लोगों की इच्छाहीन शक्ति या सोची-समई नीति के कारण ऐसा हुआ हैं ।

सामाजिक नीति
जैसा समाज , वैसी राजनीति जाति , क्षेत्रवाद एवं सम्प्रदायवाद अगर समाज में है तो राजनीति में इनका होना निश्चित है । जनतंत्र में समस्याओं और सिद्धांतों के आधार पर सक्रियता होती है । जाति एवं भेदभाव के वातावरण में जिसका जन्म और अंत हो , आखिर उसकी मानसिकता यही होगी । चुनाव के समय इस मानसिकता के सामने विकास , विज्ञान , विद्वता , ईमानदारी आदि गौण हो जाते हैं । भारतीय परिप्रेक्ष्य में राजनीति का उददेश्य भने राजसत्ता हासिल करने की हो , लेकिन राजनैतिक पार्टियों की बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि जाति तोड़ने एवं भेदभाव जैसे मुद्दों को रखकर चुनाव लड़े , तमी एक आदर्श की परिस्थिति बन पाएगी , जहाँ सिद्धांतों पर जैसे ईमानदारी विकास , शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि पर चुनाव लड़कर सत्ता में आया जा सकता है । फास ने सरकारी स्कूलों में किसी भी धर्म और समुदाय के विद्यार्थियों को धार्मिक एवं पारंपरिक पोशाक पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया । लेकिन देशहित में विपक्षी पार्टियों ने मुद्दा नहीं बनाया यहाँ भी राजनैतिक पार्टियों को कड़े फैसले लेने होंगे तभी जाकर भारत भी विकसित देश बन सकेगा । जागृति आने के कारण दलित एवं पिछड़े भी सत्ता हासिल करने की होड़ में सक्रिय होते जा रहे हैं बजाये कि पार्टियों के पहले दबंग जातियों ही मुख्य रूप से चुनाव लड़ती थी और अब पिछड़ भी लड़ने लगे है तो एक ऐसी स्थिति आ जाएगी कि जब चुनाव जातियों के मध्य और तेज हो जाएगा , जिसमें दबंगों का सत्ता से सफाया हो सकता है । अंततः देश और मानवता के हित में यही है कि इस सड़ी – गली व्यवस्था को तोड़ने के लिए मुख्य एजेंडा बने ।

न्यायपालिका

वर्तमान में सबसे अधिक अगर किसी संस्था में गिरावट आई है , तो वह न्यायपालिका में कुछ भी रुपयों में भारत के मुख्य न्यायधीश के खिलाफ वारंट हासिल किया जा सकता है , तो इसी से अंदाज लगना चाहिए कि न्यायपालिका कितनी भ्रष्ट है । बाप – दादा के मुकदमों का फैसला उनके नाती – पोतों के समय में हो रहा हो तो क्या इसे न्याय मिलना कहेंगे ? आज देश में तीन करोड़ से भी अधिक केस लम्बित है । वास्तव में न्यायपालिका में वंशवाद हावी है । जजों को ईमानदारी , कार्यक्षमता एवं सामाजिक संवेदना आदि बातों पर सोच – विचार किए बिना ही नियुक्त किया जाता है । ऐसे में उनसे उम्मीद की जाए ? संयुक्त विकास पार्टी मांग करती है कि हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति एक आयोग के जिसके सदस्य प्रधानमंत्री विपक्ष का नेता , राष्ट्रपति एवं अधिकारिता मंत्री सुप्रीम कोर्ट का मुख्य दलित एवं एक आदिवासी एक अल्पसंख्यक और क्या द्वारा हो , सामाजिक न्याय एक न्यायधीश एक पिछड़े वर्ग से होना चाहिए । वर्तमान में न्यायपालिका जातीय दुर्भावना से भरी पड़ी है । इसके अलावा आयोग को यह भी अधिकार दिया जाए एवं भी जिम्मेदार या उच्च पद पर नियुक्त कर दिया जाए और यह उम्मीद की जाए कि वह अपने पारिवारिक माहीत से प्रभावित न रहे यह असंभव है । इसलिए सभी वर्गों एवं धर्मों के लोगों को प्रतिनिधित्व दिया जाए, ताकि किसी के प्रती अन्याय न हो सके । संयुक्त विकास पार्टी उच्च न्यायपालिका मे दलितों के लिये आरक्षण प्राप्त करने का भारपूर प्रयास करेगी ।
आजाद भारत ने जनतंत्रीय शासन प्रणाली को अपनाया । लगभग 200 वर्शों के ब्रिटिश शासन के समय इसका विकास हुआ । राजनैतिक पार्टी इसका सबसे अहम अंग है । पार्टी का उद्देश्य अपने सिद्धांतों को लेकर संघर्श करते हुए सत्ता पहुंचना होता है । जाहिर है कि पार्टी का सिद्धांत है , वही सरकार का स्वरूप एवं चरित्र तय करता है । आधुनिक जनतंत्र का विकास पश्चिमी देशों में हुआ अतः यहाँ की पार्टियों का भी चरित्र पाश्चात्य देशों जैसा ही होना स्वाभाविक है । अगर ऐसा नहीं है तो हमें कोई और शासन प्रणाली की खोज करनी होगी जो व्यर्थ का प्रयास होगा । चुनाव सबसे निर्णायक भूमिका अदा करता है । यही विचार करना होगा कि क्या हमारे यहाँ चुनाव पार्टी के लिखे गए संविधान या कार्यक्रम के अनुसार होते हैं ? भारतीय समाज में जाति संस्था बहुत प्रभावशाली है , जबकि जनतंत्र जिन देशों में विकसित हुआ वहीं नहीं है । ऐसे में जनतंत्र का लाभ क्या देश या समाज को मिल सकेगा ? यही कारण है कि संयुक्त विकास पार्टी के मुख्य उद्देश्यों में समान व अनिवार्य शिक्षा सबको काम उद्धव समतामूलक समाज की स्थापना की प्राथमिकता दी गई आर्थिक शोशण या गरीबी और अमीरी भी बहुत बजे कारण है जिसकी वजह से जनतंत्र के उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता भारत जब सामाजिक एवं जातीय भेदभाव , आर्थिक संकट , बेरोजगारी , साम्प्रदायिकता एवं बुनियादी समस्याओं से गुजर रहा हो , ऐसे में एक ऐसी पार्टी की आवश्यकता है , जो यहाँ की सामाजिक एवं आर्थिक सच्चाइयों को मद्देनजर रखते हुए सत्ता हासिल करे । संयुक्त का मतलब सबको एक साथ लेकर उन्या होता है और पार्टी उन सभी के लिए संयुक्त रूप से संपर्क करगी जिसे अभी तक न्याय नहीं मिला या नहीं |

दलित

हजारों वर्ष से इनका शोशण हुआ है । इतनी बड़ी संख्या में रह रहे समाज को अभाव और भेदभाव में रखकर कभी ना देश का विकास नहीं किया जा सकता । देश परिवार का एक बड़ा रूप है , उसी तरह से जैसे कि परिवार के किसी सदस्य के दुखी होने के कारण खुशहाली और सुख – शांति चली जाती है । दलितों की तरक्की राजनीति और सरकारी नौकरियों के क्षेत्रों में आरक्षण के कारण हुई लेकिन जैसे उद्योग बाजार व्यवसाय मीडिया हाईटेक वित्तीय संस्थानों , आयात निर्यात कला व फिल्म एवं उच्च शिक्षा इत्यादि में अभी तक इनके दम भी नहीं है . मागीदारी की तो बात ही दूर की है । संयुक्त विकास पार्टी समझती है कि इनको इन सभी क्षेत्रों में भागीदारी दी जाए , ताकि ये देश की मुख्य धारा से जुबक अमेरिका की तर्ज पर यह भी दलितों को निजी क्षेत्र में आरक्षण देकर राष्ट्र की मुख्य धारा से जोडना चाहिये |

आदिवासी

हजारों वर्ष से जातीय भेदभाव से भले ये दूर रहे हों , लेकिन आर्थिक पिछडापन इनमें सबसे अधिक है । पारम्परिक रूप से इनका खान – पान प्रकृति पूर्ति करती रही है , लेकिन अब उसका भी सहारा न रहा । बड़े पूँजीपतियों द्वारा जमीन हथियाने और उद्योग लगाने के कारण ये जल जंगल और जमीन से वंचित होते जा रहे हैं । तेजी से औद्योगिकरण और शहरीकरण के कारण अब इन्हें राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है । हालांकि इन्हें भी राजनीति और सरकारी क्षेत्र में दिया गया है लेकिन अति पिछड़े आदिवासियों को लाभ नहीं मिल सका । भगवा दल उन्हें हिन्दू धर्म के सब्जबाग दिखाकर गुमराह अवश्य कर रहे हैं । आरक्षण को लागू करते हुए अन्य क्षेत्रों में इनकी भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए ।

अल्पसंख्यक

जनतंत्र में अल्पसंख्यक होने में कोई दोश नहीं है । फिर भी भारत जैसे देश में बहुतसंख्यक अपनी बाहुल्यता का फायदा उठा ही लेते हैं । मुसलमानों की आड़ में भाजपा एवं संघ परिवार को सत्ता में आने में मदद मिली , क्योंकि उन्होंने लगातार प्रचार किया कि इन्होंने अतीत में अत्याचार किए और वर्तमान में दूसरी पार्टियाँ अनावश्यक रूप से प्रोत्साहित कर रही है । ईसाइयों इस देश में विज्ञान , इजीनियरिंग एवं आधुनिक शिक्षा व स्वास्थ्य उपलब्ध कराई , लेकिन धर्मातरण के नाम पर इनके ऊपर भी हमला किया जा रहा है । जैन , सिक्ख यौद्ध अल्पसंख्य है , फिर भी इन्हें इसकी मान्यता नहीं मिली है , इसी से इनकी स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है । संयुक्त विकास पार्टी इनकी समुचित भागीदारी के लिए संघर्श करेगी । मुसलमानों एवं दलित इसाइयों की हालत दिन – प्रतिदिन बदतर होती जा रही है , इसलिए उनमें स्वास्थ्य और शिक्षा का प्रसार अधिक होना चाहिए । मुसलमानों की भागीदारी सरकारी नौकरियों में एवं पुलिस में नगण्य है , इसलिए आबादी के अनुसार आरक्षण दिया जाना चाहिए । मुसलमान अपनी सुरक्षा भाजपा को सत्ता से बाहर करके करना चाहता है । तथाकथित धर्मनिरपेक्ष काय चालीस वर्गों से भी अधिक केन्द्र और उत्तरी राज्यों में शासन कर रही थी , दूसलमान एक के दंगे अधिक हुए , जैसे अलीगढ़ मुरादाबाद मेरठ कानपुर इत्यादि के दंगे । भाजपा को शासन उत्तर प्रदेश के साथ – साथ केन्द्र में भी हो तो भी दंगा हो साम्प्रदायिकता का इलाज के द्वारा पास है । कांशीराम जी के आंदोलन से से जो चेतना दलितों में पैदा हुई उसके हिन्दू – मुसलमान के दंगे नहीं नहीं है वहीं मनुवादियों के उकसानेपलमानों से लड़ते हैं , अतः दलित – मुस्लिम एकता ही इस रोग का इलाज है ।

महिलाएँ

हमारी समझ में महिलाओं की हालत ज्यादा ही खराब है । वर्तमान सामाजिक संरचना योग्य महिलाओं की भी न्याय नहीं मिल पा रहा है । सेसिया जाता है कि वे पराकी है और पति की सेवा में ही उनका उद्धार है लेकिन मानव का नहीं । विवाह में कन्या को दान किया जाता है । इससे उस मानसिकता को चेतन या अवेतन अवस्था में बढ़ावा मिलता है कि ये उपभोग और बच्चा पैदा करने की वस्तु है । जब तक इस मानसिकता पर कुठाराघात नहीं होगा , तब तक स्वयं महिलाएं भी अपने अधिकार को लेने के लिए आगे नहीं आएगी । दहेज आदि इसी मानसिकता के रहा है । धर्म के नाम पर मुस्लिम महिलाओं का शोशण जबरदस्त रूप से हो रहा है । जिन देशों ने सरक्की की है , यहाँ महिलाओं की भागीदारी उत्पादन में लगभग बराबरी रही है । मानवता के साथ – साथ देश की तरक्की लिए भी महिलाओं को समान अधिकार शिक्षा और अन्य आवश्यक संरक्षण देना चाहिए । सिनेमा एवं अन्य माध्यमों से यह दर्शाया जाता है कि महिला खूबसूरत वस्तु और पवित्रता की पास है और जो आदमी करता है ये ये काम नहीं कर सकती है । सरकारी प्रयास किया ही जाना चाहिए , लेकिन हमारे देश में इनके उत्थान के लिए सरकार और राजनीतिज्ञों को सामाजिक धरातल पर उतरकर काम करना होगा ।

पिछड़ा वर्ग

पिछड़े वर्ग की संख्या देश में सबसे अधिक है , लेकिन यह सबसे ज्यादा विभाजित भी है । मण्डल कमीशन लागू करवाने की लड़ाई मूलतः दलित कर्मचारियों व अधिकारियों ने लड़ी , लेकिन पिछड़े वर्ग में जागृति एवं संगठन के अभाव में इसका वे सही लाभ भी नहीं उठा पाए अति पिछड़ा वर्ग की स्थिति बहुत ही दयनीय है । और उसमें से कुछ की हालत दलितों से भी बदतर है । अति पिछड़े वर्ग के विकास के लिए विशेष कार्यक्रम लाया जाना चाहिए और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि आरक्षण का लाभ इन्हें मिले ।

सामान्य वर्ग

भेदभाव केवल हमारे देश में ही नहीं , बल्कि अमेरिका जैसे देशों में भी रहा है लेकिन वहाँ के सम्पन्न एवं अभिजात्य वर्ग ने सोचा कि यदि इसे खत्म नहीं किया गया तो ऐसा समाज बनकर रह जाएगा जिसमें शोशित तो परेशान रहें ही शोशक अमन – चैन से नहीं रह पाएंगे बिहार , उत्तर प्रदेश वा अन्य राज्यों में हालात ऐसे हो गए हैं कि सवर्ण अल्पसंख्यक जाति होने के कारण राजसत्ता से बाहर होते जा रहे हैं . यदि जाति का उन्मूलन न हुआ तो न तो ये और न ही देश खुशहाल हो सकेगा । जाति के सामने विकास शिक्षा प्रशासन वैज्ञानिक सोच आदि सब गौण है , इसलिए सक्षणों को जाति तोड़ने के लिए संयुक्त विकास पार्टी में शामिल होकर आगे आना चाहिए । देखा यह जाता है कि दलित – शोशित तो उनको अपना नेता मान लेते हैं . लेकिन ये नहीं । आखिर इस प्रतिक्रिया के चलते हमारा समाज कब तक जलता रहेगा |

आर्थिक नीति

इस देश में गरीबी और अमीरी का फासला दुनिया के तमाम अन्य देश से अधिक है । ऐतिहासिक कारण के अलावा वर्तमान में तमाम ऐसे कारण उत्पन्न हो रहे हैं , जिसमें गरीब और गरीब हो जाएंगे । कुछ वर्ष पहले तक सरकारों की यह नैतिक जिम्मेदारी मानी जाती थी कि उन्हें शिक्षा , स्वास्थ्य एवं अन्य बुनियादी समस्याओं का समाधान करना चाहिए । भूमण्डलीकरण , उदारीकरण एवं निजीकरण की हवा में अब यह दलील दी जा रही है कि सरकार का काम व्यवसाय या रोजगार देना नहीं है , बल्कि कानून व्यवस्था एवं विदेशनीति इत्यादि प्रमुख है । ऐसा इसलिए भी हुआ कि दुनिया और देश स्तर पर समाजवाद और साम्यवाद का आंदोलन कमजोर हुआ । डॉ . अम्बेडकर ने सिफारिश की थी कि भूमि का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए , लेकिन दलित भी इस आर्थिक एजेण्डे को कभी पहचान नहीं पाए । संयुक्त विकास पार्टी कटिबद्ध है कि सबको रोजगार मुहैया हो और लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं की पीर्ति की जाए ।

मजदूर

एक समय था कि मजदूरों के हित के लिए सरकार संवेदनशील हुआ करती थी , लेकिन आज उसी की नीति के कारण इनकी छटनी हो रही है और जबरन नौकरी से निकाला जा रहा है । दस या बीस साल पहले जिस उत्पादन में 1000 मजदूरों की जरूरत हुआ करती थी , आज मुनाफाखोरी के चक्कर में 100-50 मजदूरों से इतना काम लिया जा रहा है । हाईटैक और मशीनीकरण का विरोध तो हम नहीं करते हैं , लेकिन ऐसे उद्योगों को लगाया जाए , जिसमें अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिले या वर्तमान में उद्योगपतियों के ऊपर नजर हो कि वे पर मजदूर न रख पाए और अधिक से अधिक लोगों को रोजगार दिलवाया जाए । सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि मजदूरों की हड़ताल पर नहीं जाना चाहिए , लेकिन जब सरकारी कम्पनियों का विनिवेश या बेचने का मामला आता है , सो फैसलाजीपतियों के पक्ष में हो रहा है , अत : दिनों दिन मजदूरों की वेतन कमी और अपने अधिकारों की मांग का अधिकार छिनता जा रहा है ।

भूमिहीन

देश की कुल ग्रामीण जनसंख्या का 65 प्रतिशत भूमिहीन है और इसमें दलित शत – प्रतिशत हैं । जापान एवं यूरोप में 40 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण कृषि के ऊपर न निर्भर करके अन्य क्षेत्र जैसे कॉटेज इंडस्ट्रीज , कृषि आधारित उद्योग , भूमि संरक्षण आदि क्षेत्रों में रोजगार से जुड़े हैं । भारत में भी इसी मार्ग पर चलकर ग्रामीण को रोजगार दिया जा सकता है । इससे शहरों की ओर पलायनवाद भी रुकेगा ।

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